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उपनयन संस्कार

मूल्य : ₹9100 - ₹18100

यज्ञोपवीत संस्कार द्विजत्व (दूसरा जन्म) का प्रतीक है, जो अनुशासन, नैतिकता और आध्यात्मिक उत्थान सिखाता है। इसमें जनेऊ धारण और गायत्री मंत्र की दीक्षा दी जाती है। यह बालक के जीवन में एक नया चरण लाता है, जब वह ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रवेश करता है और वेदों का अध्ययन करने के लिए गुरु के पास जाता है।

मुख्य जानकारी
  • इस संस्कार के माध्यम से बालक को वेदों का अध्ययन करने का अधिकार प्राप्त होता है।
  • गायत्री मंत्रदीक्षा  यह मंत्र मानसिक शुद्धता, आत्मिक उन्नति सहायक होता है।
  • यज्ञोपवीत तीन धागों से बना होता है, जो त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के प्रतीक हैं। 
  • यह संस्कार ध्यान, योग और जीवनशैली में अनुशासन को बढ़ावा देता है, 
  • इससे ब्राह्मण बालक ब्रह्मचर्य अवस्था में प्रवेश कर सकता है।  
हमारा वादा

o वैदिक विधि - सभी अनुष्ठान प्राचीन वैदिक विधियों का पालन करके किए जाते हैं।

o समयबद्धता - हम समय के पाबंद हैं और प्रामाणिकता की गारंटी देते हैं।

o मार्गदर्शन - हमारे पुजारी आपको पूरे अनुष्ठान के दौरान मार्गदर्शन प्रदान करेंगे।

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यज्ञोपवीत संस्कार
यज्ञोपवीत संस्कार हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण संस्कार है, जिसे द्विजत्व (दूसरा जन्म) प्राप्त करने की प्रक्रिया माना जाता है। यह संस्कार व्यक्ति को धार्मिक, नैतिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाता है। विशेष रूप से ब्राह्मणों के लिए यह अनिवार्य माना गया है, लेकिन कुछ क्षत्रिय और वैश्य समुदाय भी इसे धारण करते हैं।
यज्ञोपवीत संस्कार एक पवित्र एवं आवश्यक प्रक्रिया है, जो व्यक्ति को धार्मिक एवं नैतिक रूप से सशक्त बनाती है। इस संस्कार को अपनाकर व्यक्ति अपने जीवन को अधिक अनुशासित और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बना सकता है।
यज्ञोपवीत संस्कार का महत्व
1.    द्विजत्व प्राप्ति: ब्राह्मण को द्विज कहा जाता है, जिसका अर्थ है "दो बार जन्मा"। यज्ञोपवीत संस्कार करने पर लड़के का दूसरा जन्म माना जाता है।
2.    पवित्र धागे का धारण: इस संस्कार के दौरान लड़के के बाएं कंधे पर यज्ञोपवीत (जनेऊ) नामक पवित्र धागा बांधा जाता है, जो धार्मिक अनुशासन और नैतिकता का प्रतीक है।
3.    वेदों के अध्ययन की अनुमति: संस्कार के बाद लड़का वेदों और शास्त्रों को पढ़ने के योग्य हो जाता है।
4.    बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि: इस संस्कार से व्यक्ति की स्मरण शक्ति और ज्ञान अर्जन करने की क्षमता बढ़ती है।

पूजा विधि को सही ढंग से संपन्न करने के लिए अनुभवी पंडित की आवश्यकता होती है। संस्कार की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में संपन्न होती है:
1.    गौरी गणेश पूजा – शुभ कार्य की शुरुआत गणपति वंदना से होती है।
2.    पुण्याह वचन – परिवार की शुद्धि और संस्कार की शुद्धता का संकल्प।
3.    महा संकल्प – लड़के के जीवन में धार्मिक कर्तव्यों का संकल्प लिया जाता है।
4.    कलश पूजा – पवित्र जल से कलश स्थापित कर देवताओं का आह्वान किया जाता है।
5.    उपनयन संस्कार – लड़के को जनेऊ धारण कराया जाता है।
6.    गायत्री मंत्र की दीक्षा – यह मंत्र व्यक्ति के आध्यात्मिक उत्थान में सहायक होता है।
7.    हवन – वैदिक मंत्रों के साथ पवित्र अग्नि में आहुति दी जाती है।
विभिन्न परंपराओं में यज्ञोपवीत संस्कार 
•    उत्तर भारत: यहाँ यज्ञोपवीत संस्कार अधिकतर 8 से 16 वर्ष की आयु के बीच संपन्न किया जाता है।
•    दक्षिण भारत: यहाँ इसे 'उपनयनम' कहा जाता है और यह बचपन में ही किया जाता है।
•    महाराष्ट्र और गुजरात: कुछ समुदायों में विवाह से पहले यज्ञोपवीत संस्कार किया जाता है।
यज्ञोपवीत संस्कार के लाभ
•    व्यक्ति को धार्मिक और आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर करता है।
•    आत्मसंयम, अनुशासन और नैतिकता का विकास होता है।
•    मानसिक और बौद्धिक विकास में सहायक होता है।
•    शुभ संस्कारों और अनुष्ठानों को करने की पात्रता प्राप्त होती है।
यज्ञोपवीत संस्कार के लिए पंडित  जी बुक करें
यदि आप यज्ञोपवीत संस्कार कराना चाहते हैं, तो अनुभवी पंडित की सहायता लें। हमारे पंडित जी सभी आवश्यक पूजा सामग्री लेकर आएंगे और वैदिक विधि से संस्कार संपन्न करेंगे। सभी पंडित वैदिक पाठशाला से प्रशिक्षित और अनुभवी हैं।
 

•    क्या मैं पूजा की पुष्टि करने के लिए पूरी राशि का अग्रिम भुगतान कर सकता हूँ?
•    हाँ, आप अपनी बुकिंग की पुष्टि करने के लिए टोकन के रूप में पूरी राशि का भुगतान कर सकते हैं।
•    पूजा पूरी करने में कितना समय लगता है?
•    पूजा आम तौर पर एक बार में 3  से 5   घंटे के लिए की जाती है, यह पूजा के लिए चुने गए पैकेज पर भी निर्भर करता है।